श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 4: किष्किंधा काण्ड  »  सर्ग 11: वाली का दुन्दुभि दैत्य को मारकर उसकी लाश को मतङ्ग वन में फेंकना, मतङ्गमुनि का वाली को शाप देना, सुग्रीव का राम से साल-भेदन के लिये आग्रह करना  »  श्लोक 84-85
 
 
श्लोक  4.11.84-85 
 
 
एवमुक्त्वा तु सुग्रीवं सान्त्वयँल्लक्ष्मणाग्रज:।
राघवो दुन्दुभे: कायं पादाङ्गुष्ठेन लीलया॥ ८४॥
तोलयित्वा महाबाहुश्चिक्षेप दशयोजनम्।
असुरस्य तनुं शुष्कां पादाङ्गुष्ठेन वीर्यवान्॥ ८५॥
 
 
अनुवाद
 
  लक्ष्मण के बड़े भाई बलशाली राघव श्री राम ने सुग्रीव को दिलासा देते हुए खेल-खेल में ही अपने पैर के अंगूठे से दुन्दुभि के शरीर को उठा लिया और उस असुर के सूखे कंकाल को पैर के अंगूठे से ही दस योजन दूर फेंक दिया।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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