श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 4: किष्किंधा काण्ड  »  सर्ग 11: वाली का दुन्दुभि दैत्य को मारकर उसकी लाश को मतङ्ग वन में फेंकना, मतङ्गमुनि का वाली को शाप देना, सुग्रीव का राम से साल-भेदन के लिये आग्रह करना  »  श्लोक 76
 
 
श्लोक  4.11.76 
 
 
तमजय्यमधृष्यं च वानरेन्द्रममर्षणम्।
विचिन्तयन्न मुञ्चापि ऋष्यमूकममुं त्वहम्॥ ७६॥
 
 
अनुवाद
 
  ऋष्यमूक पर्वत पर रहने वाले वानरराज वाली को जीतना अन्य प्राणियों के लिए असंभव है। उस पर आक्रमण करना या उसका अनादर करना भी संभव नहीं है। वो शत्रु के अपमान को बर्दाश्त नहीं कर सकता। जब मैं उसकी शक्ति के बारे में सोचता हूँ, तो मैं एक पल के लिए भी इस ऋष्यमूक पर्वत को नहीं छोड़ सकता।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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