ये चास्य सचिवा: केचित् संश्रिता मामकं वनम्॥ ५५॥
न च तैरिह वस्तव्यं श्रुत्वा यान्तु यथासुखम्।
तेऽपि वा यदि तिष्ठन्ति शपिष्ये तानपि ध्रुवम्॥ ५६॥
अनुवाद
यहाँ जो भी उद्धत रानी के सचिव हैं, उन्हें शीघ्र ही इस वन को छोड़ देना चाहिए। वे मेरा आदेश सुनकर सुख पूर्वक यहाँ से चले जाएं। यदि वे यहीं रहेंगे तो निश्चय ही उन्हें भी मेरा शाप भुगतना पड़ेगा।