श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 4: किष्किंधा काण्ड  »  सर्ग 10: भाई के साथ वैर का कारण बताने के प्रसङ्ग में सुग्रीव का वाली को मनाने और वाली द्वारा अपने निष्कासित होने का वृत्तान्त सुनाना  »  श्लोक 5-6h
 
 
श्लोक  4.10.5-6h 
 
 
अपिधाय बिलद्वारं शैलशृङ्गेण तत् तदा॥ ५॥
तस्माद् देशादपाक्रम्य किष्किन्धां प्राविशं पुन:।
 
 
अनुवाद
 
  तब मैंने उस बिल के द्वार को एक पर्वत की चोटी से ढक दिया और उस स्थान से हट गया। इसके बाद मैं किष्किन्धा नगरी में वापस आ गया।
 
 
 
  Connect Form
  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
  © copyright 2024 vedamrit. All Rights Reserved.