पश्य लक्ष्मण नृत्यन्तं मयूरमुपनृत्यति॥ ३८॥
शिखिनी मन्मथार्तैषा भर्तारं गिरिसानुनि।
अनुवाद
लक्ष्मण! देखो, पर्वत की चोटी पर नृत्य करते हुए अपने पति मयूर के साथ-साथ वह मोरनी भी कामपीड़ित होकर नाच रही है। पर्वत की चोटी पर एक मोर मयूर के नाच के साथ-साथ एक मोरनी भी नाच रही है। वह मोरनी काम से पीड़ित है और उसके मन में मयूर के लिए प्रेम है।