श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 4: किष्किंधा काण्ड  »  सर्ग 1: पम्पासरोवर के दर्शन से श्रीराम की व्याकुलता, दोनों भाइयों को ऋष्यमूक की ओर आते देख सुग्रीव तथा अन्य वानरों का भयभीत होना  »  श्लोक 121
 
 
श्लोक  4.1.121 
 
 
उत्साहो बलवानार्य नास्त्युत्साहात् परं बलम्।
सोत्साहस्य हि लोकेषु न किंचिदपि दुर्लभम्॥ १२१॥
 
 
अनुवाद
 
  भाई! उत्साह ही सबसे शक्तिशाली होता है। उत्साह से बढ़कर कोई दूसरी शक्ति नहीं होती है। एक उत्साही व्यक्ति के लिए संसार में कुछ भी असंभव नहीं होता।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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