श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 4: किष्किंधा काण्ड  »  सर्ग 1: पम्पासरोवर के दर्शन से श्रीराम की व्याकुलता, दोनों भाइयों को ऋष्यमूक की ओर आते देख सुग्रीव तथा अन्य वानरों का भयभीत होना  »  श्लोक 113-114
 
 
श्लोक  4.1.113-114 
 
 
गच्छ लक्ष्मण पश्य त्वं भरतं भ्रातृवत्सलम्।
नह्यहं जीवितुं शक्तस्तामृते जनकात्मजाम् ॥ १ १३॥
इति रामं महात्मानं विलपन्तमनाथवत्।
उवाच लक्ष्मणो भ्राता वचनं युक्तमव्ययम् ॥ १ १४॥
 
 
अनुवाद
 
  इस प्रकार महात्मा श्रीराम को अनाथ की भाँति विलाप करते देख भाई लक्ष्मण ने तर्कयुक्त एवं निर्दोष शब्दों में कहा- "हे लक्ष्मण! तुम जाओ और अपने भाई भरत से मिलो, जो अपने भाइयों से बहुत प्रेम करते हैं। मैं जनक की पुत्री सीता के बिना जीवित नहीं रह सकता।"
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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