गच्छ लक्ष्मण पश्य त्वं भरतं भ्रातृवत्सलम्।
नह्यहं जीवितुं शक्तस्तामृते जनकात्मजाम् ॥ १ १३॥
इति रामं महात्मानं विलपन्तमनाथवत्।
उवाच लक्ष्मणो भ्राता वचनं युक्तमव्ययम् ॥ १ १४॥
अनुवाद
इस प्रकार महात्मा श्रीराम को अनाथ की भाँति विलाप करते देख भाई लक्ष्मण ने तर्कयुक्त एवं निर्दोष शब्दों में कहा- "हे लक्ष्मण! तुम जाओ और अपने भाई भरत से मिलो, जो अपने भाइयों से बहुत प्रेम करते हैं। मैं जनक की पुत्री सीता के बिना जीवित नहीं रह सकता।"