आत्मानं नियमैस्तैस्तै: कर्षयित्वा प्रयत्नत:।
प्राप्तये निपुणैर्धर्मो न सुखाल्लभते सुखम्॥ ३१॥
अनुवाद
चतुर मनुष्य भिन्न-भिन्न वानप्रस्थोचित नियमों का पालन करके अपने शरीर को क्षीण करते हैं और यत्नपूर्वक धर्म का पालन करते हैं; क्योंकि सुखद साधनों से सुख के हेतुक धर्म की प्राप्ति नहीं होती है।