श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 9: सीता का श्रीराम से निरपराध प्राणियों को न मारने और अहिंसा-धर्म का पालन करने के लिये अनुरोध  »  श्लोक 31
 
 
श्लोक  3.9.31 
 
 
आत्मानं नियमैस्तैस्तै: कर्षयित्वा प्रयत्नत:।
प्राप्तये निपुणैर्धर्मो न सुखाल्लभते सुखम्॥ ३१॥
 
 
अनुवाद
 
  चतुर मनुष्य भिन्न-भिन्न वानप्रस्थोचित नियमों का पालन करके अपने शरीर को क्षीण करते हैं और यत्नपूर्वक धर्म का पालन करते हैं; क्योंकि सुखद साधनों से सुख के हेतुक धर्म की प्राप्ति नहीं होती है।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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