श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 9: सीता का श्रीराम से निरपराध प्राणियों को न मारने और अहिंसा-धर्म का पालन करने के लिये अनुरोध  »  श्लोक 3-4
 
 
श्लोक  3.9.3-4 
 
 
त्रीण्येव व्यसनान्यत्र कामजानि भवन्त्युत।
मिथ्यावाक्यं तु परमं तस्माद् गुरुतरावुभौ॥ ३॥
परदाराभिगमनं विना वैरं च रौद्रता।
मिथ्यावाक्यं न ते भूतं न भविष्यति राघव॥ ४॥
 
 
अनुवाद
 
  त्रीण्येव व्यसनान्यत्र कामजानि भवन्त्युत। अर्थात इस संसार में वासना से उत्पन्न होने वाले तीन व्यसन होते हैं। इनमें से मिथ्याभाषण सबसे बड़ा व्यसन है, परन्तु उससे भी भारी दो और व्यसन हैं - परस्त्रीगमन और बिना किसी वैर-विरोध के ही दूसरों के साथ क्रूरतापूर्ण व्यवहार करना। हे रघुनन्दन! इन तीनों व्यसनों में मिथ्याभाषण वाला व्यसन तो न तो तुम्हारे अन्दर कभी हुआ है और न आगे कभी होगा।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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