श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 9: सीता का श्रीराम से निरपराध प्राणियों को न मारने और अहिंसा-धर्म का पालन करने के लिये अनुरोध  »  श्लोक 15
 
 
श्लोक  3.9.15 
 
 
क्षत्रियाणामिह धनुर्हुताशस्येन्धनानि च।
समीपत: स्थितं तेजोबलमुच्छ्रयते भृशम्॥ १५॥
 
 
अनुवाद
 
  अग्नि के निकट रखे गए ईंधन जिस प्रकार उसकी प्रखरता और बल को अत्यधिक बढ़ा देते हैं, उसी प्रकार क्षत्रियों के पास धनुष का होना उनकी शक्ति और पराक्रम का प्रतीक है। धनुष की उपस्थिति उनके साहस और पराक्रम को और अधिक बढ़ा देती है।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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