श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 9: सीता का श्रीराम से निरपराध प्राणियों को न मारने और अहिंसा-धर्म का पालन करने के लिये अनुरोध  »  श्लोक 12
 
 
श्लोक  3.9.12 
 
 
ततस्त्वां प्रस्थितं दृष्ट्वा मम चिन्ताकुलं मन:।
त्वद‍्धृत्तं चिन्तयन्त्या वै भवेन्नि:श्रेयसं हितम्॥ १२॥
 
 
अनुवाद
 
  अतः तुम्हें इस घोर कर्म के लिए प्रस्थान करते देख मेरा मन चिंता से व्याकुल हो गया है। तुम्हारे प्रतिज्ञा-पालनरूप व्रत के बारे में सोचकर मैं हमेशा यही सोचती रहती हूँ कि कैसे तुम्हारा कल्याण हो?
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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