श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 8: प्रातःकाल सुतीक्ष्ण से विदा ले श्रीराम,लक्ष्मण, सीता का वहाँ से प्रस्थान  »  श्लोक 8-9
 
 
श्लोक  3.8.8-9 
 
 
अविषह्यातपो यावत् सूर्यो नातिविराजते।
अमार्गेणागतां लक्ष्मीं प्राप्येवान्वयवर्जित:॥ ८॥
तावदिच्छामहे गन्तुमित्युक्त्वा चरणौ मुने:।
ववन्दे सहसौमित्रि: सीतया सह राघव:॥ ९॥
 
 
अनुवाद
 
  लक्ष्मण और सीता के सहित श्रीराम ने यह कहकर कि ' जिस तरह से अन्याय से प्राप्त हुई संपत्ति से नीच कुल के मनुष्य में असहनीय उग्रता आ जाती है, उसी तरह से यह सूर्यदेव जब तक असहनीय ताप देकर प्रचंड तेज से प्रकाशित होने न लगें, उसके पहले हम यहां से जाना चाहते हैं', मुनि के चरणों की वंदना की।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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