श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 8: प्रातःकाल सुतीक्ष्ण से विदा ले श्रीराम,लक्ष्मण, सीता का वहाँ से प्रस्थान  »  श्लोक 2-4
 
 
श्लोक  3.8.2-4 
 
 
उत्थाय च यथाकालं राघव: सह सीतया।
उपस्पृश्य सुशीतेन तोयेनोत्पलगन्धिना॥ २॥
अथ तेऽग्निं सुरांश्चैव वैदेही रामलक्ष्मणौ।
काल्यं विधिवदभ्यर्च्य तपस्विशरणे वने॥ ३॥
उदयन्तं दिनकरं दृष्ट्वा विगतकल्मषा:।
सुतीक्ष्णमभिगम्येदं श्लक्ष्णं वचनमब्रुवन्॥ ४॥
 
 
अनुवाद
 
  श्रीराम, लक्ष्मण और सीता ने तड़के उठकर कमल की सुगंध से सुवासित ठंडे पानी से स्नान किया। इसके बाद उन तीनों ने मिलकर अग्नि और देवताओं की सुबह की पूजा की। तपस्वियों के वन में सूर्योदय का दर्शन करने के बाद वे तीनों पापमुक्त यात्री ऋषि सुतीक्ष्ण के पास गए और मधुर स्वर में बोले-
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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