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श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
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काण्ड 3: अरण्य काण्ड
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सर्ग 8: प्रातःकाल सुतीक्ष्ण से विदा ले श्रीराम,लक्ष्मण, सीता का वहाँ से प्रस्थान
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श्लोक 15
श्लोक
3.8.15
द्रक्ष्यसे दृष्टिरम्याणि गिरिप्रस्रवणानि च।
रमणीयान्यरण्यानि मयूराभिरुतानि च॥ १५॥
अनुवाद
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आप पहाड़ों से बहती हुई नदियों को देखेंगे जो आँखों को सुहावनी लगती हैं और जहाँ मोरों की मधुर आवाजें गूंजती रहती हैं। ऐसे सुंदर वन क्षेत्र भी हैं जहाँ मोरों का स्वर सुनाई देता है।
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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