सप्तानां च समुद्राणां तेषां तीर्थेषु लक्ष्मण।
उपस्पृष्टं च विधिवत् पितरश्चापि तर्पिता:॥ ४॥
प्रणष्टमशुभं यन्न: कल्याणं समुपस्थितम्।
तेन त्वेतत् प्रहृष्टं मे मनो लक्ष्मण सम्प्रति॥ ५॥
अनुवाद
लक्ष्मण! यहाँ उन सातों समुद्रों के संगम पर विद्यमान तीर्थों में हमने वैदिक मंत्रोच्चार के साथ स्नान किया और पितरों को तर्पण दिया। इससे हमारे सारे पाप धुल गए और अब हमारे कल्याण का समय आ गया है। सुमित्रा नंदन! इसलिये इस समय मेरा मन बहुत प्रसन्न हो रहा है।