श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 75: श्रीराम और लक्ष्मण की बातचीत तथा उन दोनों भाइयों का पम्पासरोवर के तट पर जाना  »  श्लोक 23-26h
 
 
श्लोक  3.75.23-26h 
 
 
तिलकैर्बीजपूरैश्च वटै: शुक्लद्रुमैस्तथा।
पुष्पितै: करवीरैश्च पुंनागैश्च सुपुष्पितै:॥ २३॥
मालतीकुन्दगुल्मैश्च भण्डीरैर्निचुलैस्तथा।
अशोकै: सप्तपर्णैश्च कतकैरतिमुक्तकै:॥ २४॥
अन्यैश्च विविधैर्वृक्षै: प्रमदामिव शोभिताम्।
अस्यास्तीरे तु पूर्वोक्त: पर्वतो धातुमण्डित:॥ २५॥
ऋष्यमूक इति ख्यातश्चित्रपुष्पितपादप:।
 
 
अनुवाद
 
  तिलक, बिजौरा, वट, सफेद चंपक, फूले हुए करवीर, खिला हुआ पुष्पित नागकेसर, मालती, कुन्द की झाड़ियाँ, भंडीर (बरगद), निचुल, अशोक, सप्तपर्ण, कतक, अतिमुक्तक तथा अन्य नाना प्रकार के वृक्षों से सुसज्जित पम्पा नदी भाँति-भाँति की वस्त्रभूषा से सजी हुई युवती के समान दिखाई दे रही थी। उसी के तट पर विविध धातुओं से मण्डित पूर्वोक्त ऋष्यमूक नाम से विख्यात पर्वत सुशोभित था। उसके ऊपर फूलों से भरे हुए विचित्र वृक्ष शोभा दे रहे थे।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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