श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 75: श्रीराम और लक्ष्मण की बातचीत तथा उन दोनों भाइयों का पम्पासरोवर के तट पर जाना  »  श्लोक 16-19
 
 
श्लोक  3.75.16-19 
 
 
तिलकाशोकपुंनागबकुलोद्दालकाशिनीम्॥ १६॥
रम्योपवनसम्बाधां पद्मसम्पीडितोदकाम्।
स्फटिकोपमतोयां तां श्लक्ष्णवालुकसंतताम्॥ १७॥
मत्स्यकच्छपसम्बाधां तीरस्थद्रुमशोभिताम्।
सखीभिरिव संयुक्तां लताभिरनुवेष्टिताम्॥ १८॥
किंनरोरगगन्धर्वयक्षराक्षससेविताम्।
नानाद्रुमलताकीर्णां शीतवारिनिधिं शुभाम्॥ १९॥
 
 
अनुवाद
 
  पम्पा नदी के तट पर तिलक, अशोक, नाग केसर, वकुल और लिसोड़े के वृक्ष उसकी सुंदरता बढ़ा रहे थे। पम्पा नदी विभिन्न प्रकार के सुंदर उपवनों से घिरी हुई थी। उसका पानी कमल के फूलों से आच्छादित था और स्फटिक मणि की तरह स्वच्छ दिखाई देता था। पानी के नीचे स्वच्छ रेत फैली हुई थी। उसमें मछलियाँ और कछुए भरे हुए थे। तट पर खड़े वृक्ष नदी की सुंदरता में चार चाँद लगा रहे थे। पम्पा नदी चारों ओर लताओं से घिरी हुई थी और ऐसा लगता था जैसे उसके आसपास सहेलियाँ हों। पम्पा नदी का जल किन्नर, नाग, गंधर्व, यक्ष और राक्षस भी पीते थे। तरह-तरह के पेड़ों और लताओं से भरी हुई पम्पा नदी शीतल जल का एक सुंदर भंडार प्रतीत होती थी।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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