श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 74: श्रीराम और लक्ष्मण का पम्पासरोवर के तट पर मतङ्गवन में शबरी के आश्रम पर जाना, शबरी का अपने शरीर की आहुति दे दिव्यधाम को प्रस्थान करना  »  श्लोक 8
 
 
श्लोक  3.74.8 
 
 
कच्चित्ते निर्जिता विघ्ना: कच्चित्ते वर्धते तप:।
कच्चित्ते नियत: कोप आहारश्च तपोधने॥ ८॥
 
 
अनुवाद
 
  तपोधने! क्‍या तुमने सारे विघ्‍नों को जीत लिया है? क्‍या तुम्‍हारी तपस्‍या बढ़ रही है? क्‍या तुमने क्रोध और भोजन पर नियंत्रण कर लिया है?
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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