श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 74: श्रीराम और लक्ष्मण का पम्पासरोवर के तट पर मतङ्गवन में शबरी के आश्रम पर जाना, शबरी का अपने शरीर की आहुति दे दिव्यधाम को प्रस्थान करना  »  श्लोक 5
 
 
श्लोक  3.74.5 
 
 
तौ तमाश्रममासाद्य द्रुमैर्बहुभिरावृतम्।
सुरम्यमभिवीक्षन्तौ शबरीमभ्युपेयतु:॥ ५॥
 
 
अनुवाद
 
  उस आश्रम में पहुँचते हुए, जो बहुसंख्यक वृक्षों से घिरा हुआ था और जो बहुत ही सुरम्य दिखाई दे रहा था, वे दोनों भाई शबरी से मिले।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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