उसने अपने मन को एकाग्र करते हुए उस पवित्र स्थान की यात्रा की, जहाँ उसके महान गुरु, जो पवित्र आत्मा वाले महर्षि थे, निवास करते थे।
इत्यार्षे श्रीमद्रामायणे वाल्मीकीये आदिकाव्येऽरण्यकाण्डे चतु:सप्ततितम: सर्ग: ॥ ७ ४॥
इस प्रकार श्रीवाल्मीकिनिर्मित आर्षरामायण आदिकाव्यके अरण्यकाण्डमें चौहत्तरवाँ सर्ग पूरा हुआ ॥ ७ ४॥