श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 74: श्रीराम और लक्ष्मण का पम्पासरोवर के तट पर मतङ्गवन में शबरी के आश्रम पर जाना, शबरी का अपने शरीर की आहुति दे दिव्यधाम को प्रस्थान करना  »  श्लोक 32-34
 
 
श्लोक  3.74.32-34 
 
 
इत्येवमुक्ता जटिला चीरकृष्णाजिनाम्बरा।
अनुज्ञाता तु रामेण हुत्वाऽऽत्मानं हुताशने॥ ३२॥
ज्वलत्पावकसंकाशा स्वर्गमेव जगाम ह।
दिव्याभरणसंयुक्ता दिव्यमाल्यानुलेपना॥ ३३॥
दिव्याम्बरधरा तत्र बभूव प्रियदर्शना।
विराजयन्ती तं देशं विद्युत्सौदामनी यथा॥ ३४॥
 
 
अनुवाद
 
  श्रीरामचंद्रजी की आज्ञा पाकर जटा धारण करने वाली और मृगचर्म ओढ़े हुए शबरी ने अपने शरीर को आग में होम दिया। इस प्रकार वह प्रज्वलित अग्नि की तरह स्वयं को चमकदार बनाकर दिव्य वस्त्र, दिव्य आभूषण, दिव्य फूलों की माला और दिव्य अनुलेपन धारण कर अत्यंत सुंदर दिखने लगीं। सुदाम पर्वत पर आकाश में बिजली चमकती है और उसी तरह प्रकाश फैलाती हुईं वे स्वर्ग लोक चली गईं।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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