श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 74: श्रीराम और लक्ष्मण का पम्पासरोवर के तट पर मतङ्गवन में शबरी के आश्रम पर जाना, शबरी का अपने शरीर की आहुति दे दिव्यधाम को प्रस्थान करना  »  श्लोक 30
 
 
श्लोक  3.74.30 
 
 
धर्मिष्ठं तु वच: श्रुत्वा राघव: सहलक्ष्मण:।
प्रहर्षमतुलं लेभे आश्चर्यमिति चाब्रवीत्॥ ३०॥
 
 
अनुवाद
 
  श्री राम और लक्ष्मण ने जब शबरी के धर्मपरायण वचन सुने तो वे अत्यंत प्रसन्न हुए। उनके मुख से अनायास ही "आश्चर्यमिति चाब्रवीत्" अर्थात "वाकई आश्चर्य की बात है" निकल पड़ा।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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