श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 74: श्रीराम और लक्ष्मण का पम्पासरोवर के तट पर मतङ्गवन में शबरी के आश्रम पर जाना, शबरी का अपने शरीर की आहुति दे दिव्यधाम को प्रस्थान करना  »  श्लोक 27
 
 
श्लोक  3.74.27 
 
 
देवकार्याणि कुर्वद्भिर्यानीमानि कृतानि वै।
पुष्पै: कुवलयै: सार्धं म्लानत्वं न तु यान्ति वै॥ २७॥
 
 
अनुवाद
 
  देवताओं की पूजा करते हुए मेरे गुरुजनों ने जिन कमलों की मालाएँ बनायी थीं, वे आज भी मुरझायी नहीं हैं।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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