श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 74: श्रीराम और लक्ष्मण का पम्पासरोवर के तट पर मतङ्गवन में शबरी के आश्रम पर जाना, शबरी का अपने शरीर की आहुति दे दिव्यधाम को प्रस्थान करना  »  श्लोक 25
 
 
श्लोक  3.74.25 
 
 
अशक्नुवद्भिस्तैर्गन्तुमुपवासश्रमालसै:।
चिन्तितेनागतान् पश्य समेतान् सप्त सागरान्॥ २५॥
 
 
अनुवाद
 
  उपवास करने से दुर्बल होने के कारण वे चलने-फिरने में असमर्थ हो गए थे, तब उनके मन की शक्ति से वहाँ सात समुद्रों का जल प्रकट हो गया। वह सप्तसागर तीर्थ आज भी मौजूद है। उसमें सातों समुद्रों के जल मिले हुए हैं। उस जल को देखने के लिए लोग दूर-दूर से आते हैं।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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