श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 74: श्रीराम और लक्ष्मण का पम्पासरोवर के तट पर मतङ्गवन में शबरी के आश्रम पर जाना, शबरी का अपने शरीर की आहुति दे दिव्यधाम को प्रस्थान करना  »  श्लोक 24
 
 
श्लोक  3.74.24 
 
 
तेषां तप:प्रभावेण पश्याद्यापि रघूत्तम।
द्योतयन्ती दिश: सर्वा: श्रिया वेद्यतुलप्रभा॥ २४॥
 
 
अनुवाद
 
  देखिए, रघुकुलमणि! उनकी तपस्या के प्रभाव से आज भी यह वेदी अपनी दिव्य ऊर्जा से पूरे विश्व को प्रकाशित कर रही है। इसकी प्रभा आज भी अद्वितीय है।
 
 
 
  Connect Form
  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
  © copyright 2024 vedamrit. All Rights Reserved.