श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 74: श्रीराम और लक्ष्मण का पम्पासरोवर के तट पर मतङ्गवन में शबरी के आश्रम पर जाना, शबरी का अपने शरीर की आहुति दे दिव्यधाम को प्रस्थान करना  »  श्लोक 22
 
 
श्लोक  3.74.22 
 
 
इह ते भावितात्मानो गुरवो मे महाद्युते।
जुहवांचक्रिरे नीडं मन्त्रवन्मन्त्रपूजितम्॥ २२॥
 
 
अनुवाद
 
  महातेजस्वी श्रीराम! यहीं मेरे भावितात्मा (शुद्ध अंतःकरणवाले एवं परमात्मचिंतनपरायण) गुरुजन निवास करते थे। इसी स्थान पर उन्होंने गायत्री मंत्र के जप से विशुद्ध हुए अपने देह रूपी पंजर को मंत्रोच्चारणपूर्वक अग्नि में होम दिया था॥ २२॥
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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