इह ते भावितात्मानो गुरवो मे महाद्युते।
जुहवांचक्रिरे नीडं मन्त्रवन्मन्त्रपूजितम्॥ २२॥
अनुवाद
महातेजस्वी श्रीराम! यहीं मेरे भावितात्मा (शुद्ध अंतःकरणवाले एवं परमात्मचिंतनपरायण) गुरुजन निवास करते थे। इसी स्थान पर उन्होंने गायत्री मंत्र के जप से विशुद्ध हुए अपने देह रूपी पंजर को मंत्रोच्चारणपूर्वक अग्नि में होम दिया था॥ २२॥