श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 74: श्रीराम और लक्ष्मण का पम्पासरोवर के तट पर मतङ्गवन में शबरी के आश्रम पर जाना, शबरी का अपने शरीर की आहुति दे दिव्यधाम को प्रस्थान करना  »  श्लोक 2
 
 
श्लोक  3.74.2 
 
 
तौ शैलेष्वाचितानेकान् क्षौद्रपुष्पफलद्रुमान्।
वीक्षन्तौ जग्मतुर्द्रष्टुं सुग्रीवं रामलक्ष्मणौ॥ २॥
 
 
अनुवाद
 
  श्रीराम और लक्ष्मण पर्वतों पर खड़े विभिन्न प्रकार के पेड़ों को देखते हुए आगे बढ़े, जो फूलों, फलों और शहद से भरे हुए थे। वे सुग्रीव से मिलने जा रहे थे।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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