श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 74: श्रीराम और लक्ष्मण का पम्पासरोवर के तट पर मतङ्गवन में शबरी के आश्रम पर जाना, शबरी का अपने शरीर की आहुति दे दिव्यधाम को प्रस्थान करना  »  श्लोक 17-18h
 
 
श्लोक  3.74.17-18h 
 
 
एवमुक्ता महाभागैस्तदाहं पुरुषर्षभ।
मया तु संचितं वन्यं विविधं पुरुषर्षभ॥ १७॥
तवार्थे पुरुषव्याघ्र पम्पायास्तीरसम्भवम्।
 
 
अनुवाद
 
  पुरुषोत्तम! उन महान संतों ने उस समय मुझसे ऐसी ही बात कही थी। अतः पुरुषश्रेष्ठ! मैंने तुम्हारे लिए पम्पा नदी के तट पर पाए जाने वाले विविध प्रकार के जंगली फलों और जड़ों का संग्रह किया है।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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