श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 74: श्रीराम और लक्ष्मण का पम्पासरोवर के तट पर मतङ्गवन में शबरी के आश्रम पर जाना, शबरी का अपने शरीर की आहुति दे दिव्यधाम को प्रस्थान करना  »  श्लोक 14
 
 
श्लोक  3.74.14 
 
 
चित्रकूटं त्वयि प्राप्ते विमानैरतुलप्रभै:।
इतस्ते दिवमारूढा यानहं पर्यचारिषम्॥ १४॥
 
 
अनुवाद
 
  चित्रकूट पर्वत पर आपके आगमन के समय ही मेरे गुरुजन, जिनकी सेवा मैं निष्ठापूर्वक करती थी, अतुल कान्ति से प्रकाशित विमान पर बैठकर यहाँ से दिव्य-लोक चले गये।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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