श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 74: श्रीराम और लक्ष्मण का पम्पासरोवर के तट पर मतङ्गवन में शबरी के आश्रम पर जाना, शबरी का अपने शरीर की आहुति दे दिव्यधाम को प्रस्थान करना  »  श्लोक 13
 
 
श्लोक  3.74.13 
 
 
तवाहं चक्षुषा सौम्य पूता सौम्येन मानद।
गमिष्याम्यक्षयांल्लोकांस्त्वत्प्रसादादरिंदम॥ १३॥
 
 
अनुवाद
 
  सौम्य दृष्टि वाले भगवन! आपके कोमल और दयालु दृष्टि से मैं परम पवित्र हो गई हूँ। हे शत्रुओं का दमन करने वाले! अब मैं आपके प्रसाद से ही अमर लोकों को प्राप्त करूंगी।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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