श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 73: दिव्य रूपधारी कबन्ध का श्रीराम और लक्ष्मण को ऋष्यमूक और पम्पासरोवर का मार्ग बताना तथा मतङ्गमुनि के वन एवं आश्रम का परिचय देकर प्रस्थान करना  »  श्लोक 9-10h
 
 
श्लोक  3.73.9-10h 
 
 
शोभन्ते सर्वतस्तत्र मेघपर्वतसंनिभा:।
तानारुह्याथवा भूमौ पातयित्वाथवा सुखम्॥ ९॥
फलान्यमृतकल्पानि लक्ष्मणस्ते प्रदास्यति।
 
 
अनुवाद
 
   वे वृक्ष वहाँ सर्व दिशाओं में मेघ और पर्वतों के समान शोभा पाते हैं। उनके अमृत के समान मधुर फलों को लक्ष्मण आपके लिए तोड़कर ला देंगे अथवा सुख पूर्वक पृथ्वी पर झुकाकर उतार देंगे।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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