श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 73: दिव्य रूपधारी कबन्ध का श्रीराम और लक्ष्मण को ऋष्यमूक और पम्पासरोवर का मार्ग बताना तथा मतङ्गमुनि के वन एवं आश्रम का परिचय देकर प्रस्थान करना  »  श्लोक 8
 
 
श्लोक  3.73.8 
 
 
सर्वे च ऋतवस्तत्र वने चैत्ररथे यथा।
फलभारनतास्तत्र महाविटपधारिण:॥ ८॥
 
 
अनुवाद
 
  कानन की सुषमा अद्भुत है, मानो चैत्ररथ वन की भाँति उसमें सभी ऋतुएँ निवास करती हैं। वहाँ के वृक्षों की शाखाएँ विशाल हैं और वे फलों के भार से झुके हुए हैं।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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