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श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
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काण्ड 3: अरण्य काण्ड
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सर्ग 73: दिव्य रूपधारी कबन्ध का श्रीराम और लक्ष्मण को ऋष्यमूक और पम्पासरोवर का मार्ग बताना तथा मतङ्गमुनि के वन एवं आश्रम का परिचय देकर प्रस्थान करना
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श्लोक 6-7
श्लोक
3.73.6-7
तदतिक्रम्य काकुत्स्थ वनं पुष्पितपादपम्॥ ६॥
नन्दनप्रतिमं चान्यत् कुरवस्तूत्तरा इव।
सर्वकालफला यत्र पादपा मधुरस्रवा:॥ ७॥
अनुवाद
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ककुत्स्थ! पुष्पित वृक्षों से सुशोभित उस वन को पार करके तुम लोग दूसरे वन में प्रवेश करोगे, जो नंदनवन के समान मनोरम है। उस वन के वृक्ष उत्तर कुरुदेश के वृक्षों की तरह मधु की धारा बहाते हैं और उन पर सभी ऋतुओं में फल लगे रहते हैं।
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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