श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 73: दिव्य रूपधारी कबन्ध का श्रीराम और लक्ष्मण को ऋष्यमूक और पम्पासरोवर का मार्ग बताना तथा मतङ्गमुनि के वन एवं आश्रम का परिचय देकर प्रस्थान करना  »  श्लोक 46
 
 
श्लोक  3.73.46 
 
 
स तत् कबन्ध: प्रतिपद्य रूपं
वृत: श्रिया भास्वरसर्वदेह:।
निदर्शयन् राममवेक्ष्य खस्थ:
सख्यं कुरुष्वेति तदाभ्युवाच॥ ४६॥
 
 
अनुवाद
 
  कबन्ध ने अपने मूल रूप में लौटते ही अद्भुत रूप से प्रकाशित हो गया। उसका सम्पूर्ण शरीर सूर्य की किरणों से प्रकाशित हुआ। उसने राम की ओर देखा और उन्हें पम्पासरोवर का मार्ग दिखाया। वह आकाश में ही स्थित था और उसने कहा - "आप सुग्रीव के साथ मित्रता अवश्य करें"।
 
 
इत्यार्षे श्रीमद्रामायणे वाल्मीकीये आदिकाव्येऽरण्यकाण्डे त्रिसप्ततितम: सर्ग: ॥ ७ ३॥
इस प्रकार श्रीवाल्मीकिनिर्मित आर्षरामायण आदिकाव्यके अरण्यकाण्डमें तिहत्तरवाँ सर्ग पूरा हुआ ॥ ७ ३॥
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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