श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 73: दिव्य रूपधारी कबन्ध का श्रीराम और लक्ष्मण को ऋष्यमूक और पम्पासरोवर का मार्ग बताना तथा मतङ्गमुनि के वन एवं आश्रम का परिचय देकर प्रस्थान करना  »  श्लोक 43-44h
 
 
श्लोक  3.73.43-44h 
 
 
तं तु खस्थं महाभागं तावुभौ रामलक्ष्मणौ॥ ४३॥
प्रस्थितौ त्वं व्रजस्वेति वाक्यमूचतुरन्तिके।
 
 
अनुवाद
 
  उस समय वे दोनों भाई राम और लक्ष्मण वहाँ से प्रस्थान करने के लिए तैयार हुए और आकाश में खड़े हुए महाभाग कबंध के पास जाकर बोले - अब तुम परम धाम को जाओ।
 
 
 
  Connect Form
  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
  © copyright 2024 vedamrit. All Rights Reserved.