श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 73: दिव्य रूपधारी कबन्ध का श्रीराम और लक्ष्मण को ऋष्यमूक और पम्पासरोवर का मार्ग बताना तथा मतङ्गमुनि के वन एवं आश्रम का परिचय देकर प्रस्थान करना  »  श्लोक 41-42h
 
 
श्लोक  3.73.41-42h 
 
 
तस्यां वसति धर्मात्मा सुग्रीव: सह वानरै:॥ ४१॥
कदाचिच्छिखरे तस्य पर्वतस्यापि तिष्ठति।
 
 
अनुवाद
 
  धर्मात्मा सुग्रीव अपने वानर साथियों के साथ उसी गुफा में रहते हैं। किन्तु कभी-कभी वे उस पर्वत की चोटी पर भी रहते हैं।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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