श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 73: दिव्य रूपधारी कबन्ध का श्रीराम और लक्ष्मण को ऋष्यमूक और पम्पासरोवर का मार्ग बताना तथा मतङ्गमुनि के वन एवं आश्रम का परिचय देकर प्रस्थान करना  »  श्लोक 33-34
 
 
श्लोक  3.73.33-34 
 
 
शयान: पुरुषो राम तस्य शैलस्य मूर्धनि।
यत् स्वप्नं लभते वित्तं तत् प्रबुद्धोऽधिगच्छति॥ ३३॥
यस्त्वेनं विषमाचार: पापकर्माधिरोहति।
तत्रैव प्रहरन्त्येनं सुप्तमादाय राक्षसा:॥ ३४॥
 
 
अनुवाद
 
  श्रीराम! उस पर्वत की चोटी पर सोया हुआ व्यक्ति सपने में जिस धन-संपत्ति को पाता है, उसे जागने पर भी प्राप्त कर लेता है। लेकिन, जो पापी और दुष्ट व्यक्ति उस पर्वत पर चढ़ता है, उसे इस पर्वतशिखर पर ही सो जाने पर राक्षस लोग उठाकर उसके ऊपर प्रहार करते हैं।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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