श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 73: दिव्य रूपधारी कबन्ध का श्रीराम और लक्ष्मण को ऋष्यमूक और पम्पासरोवर का मार्ग बताना तथा मतङ्गमुनि के वन एवं आश्रम का परिचय देकर प्रस्थान करना  »  श्लोक 31-32
 
 
श्लोक  3.73.31-32 
 
 
ऋष्यमूकस्तु पम्पाया: पुरस्तात् पुष्पितद्रुम:॥ ३१॥
सुदु:खारोहणश्चैव शिशुनागाभिरक्षित:।
उदारो ब्रह्मणा चैव पूर्वकालेऽभिनिर्मित:॥ ३२॥
 
 
अनुवाद
 
  ऋष्यमूक पर्वत पम्पा सरोवर के पूर्व में स्थित है और इसके वृक्ष फूलों से सुशोभित हैं। इस पर्वत पर चढ़ना बहुत कठिन है क्योंकि यह छोटे-छोटे हाथियों या हाथियों के बच्चों द्वारा हर तरफ से सुरक्षित है। ऋष्यमूक पर्वत उदार है और लोगों को मनचाहा फल देता है। प्राचीन काल में स्वयं ब्रह्माजी ने इस पर्वत का निर्माण किया और इसे उदारता आदि गुणों से संपन्न बनाया।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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