श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 73: दिव्य रूपधारी कबन्ध का श्रीराम और लक्ष्मण को ऋष्यमूक और पम्पासरोवर का मार्ग बताना तथा मतङ्गमुनि के वन एवं आश्रम का परिचय देकर प्रस्थान करना  »  श्लोक 30-31h
 
 
श्लोक  3.73.30-31h 
 
 
मतङ्गवनमित्येव विश्रुतं रघुनन्दन।
तस्मिन् नन्दनसंकाशे देवारण्योपमे वने॥ ३०॥
नानाविहगसंकीर्णे रंस्यसे राम निर्वृत:।
 
 
अनुवाद
 
  रघुनन्दन! वहाँ का जंगल मतंगवन के नाम से विख्यात है। उस नन्दनवन के समान मोहक और देवताओं के वन के समान मनोरम वन में अनेक प्रकार के पक्षी भरे रहते हैं। श्रीराम! तुम वहाँ बड़े आनन्द के साथ प्रसन्नतापूर्वक विचरण करोगे।
 
 
 
  Connect Form
  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
  © copyright 2024 vedamrit. All Rights Reserved.