श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 73: दिव्य रूपधारी कबन्ध का श्रीराम और लक्ष्मण को ऋष्यमूक और पम्पासरोवर का मार्ग बताना तथा मतङ्गमुनि के वन एवं आश्रम का परिचय देकर प्रस्थान करना  »  श्लोक 26-27
 
 
श्लोक  3.73.26-27 
 
 
तेषां गतानामद्यापि दृश्यते परिचारिणी।
श्रमणी शबरी नाम काकुत्स्थ चिरजीविनी॥ २६॥
त्वां तु धर्मे स्थिता नित्यं सर्वभूतनमस्कृतम्।
दृष्ट्वा देवोपमं राम स्वर्गलोकं गमिष्यति॥ २७॥
 
 
अनुवाद
 
  सभी ऋषि तो चले गए हैं, किंतु उनकी सेवा में रहने वाली तपस्विनी शबरी आज भी वहाँ दिखाई देती हैं। हे काकुत्स्थ! शबरी चिरंजीवी होकर सदा धर्म के अनुष्ठान में लगी रहती हैं। हे श्रीराम! आप समस्त प्राणियों के लिए नित्य वंदनीय और देवता के तुल्य हैं। आपको देखकर शबरी स्वर्गलोक (साकेतधाम) को चली जाएँगी।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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