न तानि कश्चिन्माल्यानि तत्रारोपयिता नर:॥ २२॥
न च वै म्लानतां यान्ति न च शीर्यन्ति राघव।
अनुवाद
रघुनन्दन! कोई भी प्राणी वहाँ उन फूलों को काटकर अपने सिर पर नहीं सजा सकता है, क्योंकि वहाँ पहुँचना ही किसी के लिए संभव नहीं है। पम्पासरोवर के फूल कभी मुरझाते नहीं हैं और न ही गिरते हैं।