श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 73: दिव्य रूपधारी कबन्ध का श्रीराम और लक्ष्मण को ऋष्यमूक और पम्पासरोवर का मार्ग बताना तथा मतङ्गमुनि के वन एवं आश्रम का परिचय देकर प्रस्थान करना  »  श्लोक 14-16h
 
 
श्लोक  3.73.14-16h 
 
 
घृतपिण्डोपमान् स्थूलांस्तान् द्विजान् भक्षयिष्यथ:।
रोहितान् वक्रतुण्डांश्च नलमीनांश्च राघव॥ १४॥
पम्पायामिषुभिर्मत्स्यांस्तत्र राम वरान् हतान्।
निस्त्वक्पक्षानयस्तप्तानकृशानैककण्टकान्॥ १५॥
तव भक्त्या समायुक्तो लक्ष्मण: सम्प्रदास्यति।
 
 
अनुवाद
 
  पम्पा किनारे पर तुम दोनों भाई बहुतायत में मिलने वाले पक्षियों, वक्रतुंड, रोहू और नल नामक मछलियों को तीर चलाकर मारोगे। ये मछलियाँ तीर के नोक वाले भाग से बनी हुई होती है, जिन्हें घी के लोदे की तरह पकाया जाता है। ये एकदम चिकनी और मुलायम होती है और इनमें एक भी काँटा नहीं होता है। लक्ष्मण तुम्हारे लिए ये सभी व्यंजन भक्तिभाव से तैयार करेंगे। तुम दोनों भाई इन सभी खाद्य पदार्थों के साथ उस सरोवर के मोटे-मोटे और प्रसिद्ध जलचर पक्षियों और श्रेष्ठ रोहू, वक्रतुंड और नलमीन आदि मछलियों को थोड़ा-थोड़ा करके खिलाओगे। इससे तुम्हारा मनोरंजन होगा।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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