श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 73: दिव्य रूपधारी कबन्ध का श्रीराम और लक्ष्मण को ऋष्यमूक और पम्पासरोवर का मार्ग बताना तथा मतङ्गमुनि के वन एवं आश्रम का परिचय देकर प्रस्थान करना  »  श्लोक 11-12h
 
 
श्लोक  3.73.11-12h 
 
 
अशर्करामविभ्रंशां समतीर्थामशैवलाम्॥ ११॥
राम संजातवालूकां कमलोत्पलशोभिताम्।
 
 
अनुवाद
 
  श्रीराम! वहाँ के पत्थर ऐसे चिकने और शिलाजीत से लिपटे होते हैं कि पैर कभी फिसलते नहीं हैं। वहाँ की भूमि बिल्कुल समतल है, कहीं कोई ऊँचा-नीचा या खड्डा नहीं है। उस पुष्करिणी में कीचड़ का नामो-निशान नहीं है, वहाँ की भूमि पूरी तरह से बालू से भरी हुई है। कमल और उत्पल उस सरोवर की शोभा को और भी बढ़ाते हैं।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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