अशर्करामविभ्रंशां समतीर्थामशैवलाम्॥ ११॥
राम संजातवालूकां कमलोत्पलशोभिताम्।
अनुवाद
श्रीराम! वहाँ के पत्थर ऐसे चिकने और शिलाजीत से लिपटे होते हैं कि पैर कभी फिसलते नहीं हैं। वहाँ की भूमि बिल्कुल समतल है, कहीं कोई ऊँचा-नीचा या खड्डा नहीं है। उस पुष्करिणी में कीचड़ का नामो-निशान नहीं है, वहाँ की भूमि पूरी तरह से बालू से भरी हुई है। कमल और उत्पल उस सरोवर की शोभा को और भी बढ़ाते हैं।