श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 72: श्रीराम और लक्ष्मण के द्वारा चिता की आग में कबन्ध का दाह तथा उसका दिव्य रूप में प्रकट होकर उन्हें सग्रीव से मित्रता करने के लिये कहना  »  श्लोक 5-7h
 
 
श्लोक  3.72.5-7h 
 
 
ततश्चिताया वेगेन भास्वरो विरजाम्बर:।
उत्पपाताशु संहृष्ट: सर्वप्रत्यङ्गभूषण:॥ ५॥
विमाने भास्वरे तिष्ठन् हंसयुक्ते यशस्करे।
प्रभया च महातेजा दिशो दश विराजयन्॥ ६॥
सोऽन्तरिक्षगतो वाक्यं कबन्धो राममब्रवीत्।
 
 
अनुवाद
 
  तब वेग से चिता के ऊपर उठा और तुरंत एक चमकदार विमान पर जा बैठा। साफ वस्त्रों से सजे हुए वह बहुत तेजस्वी दिखाई दे रहा था। उसके मन में खुशी भरी हुई थी और सभी अंगों में दिव्य आभूषण शोभा दे रहे थे। हंसों से जुते हुए उस यशस्वी विमान पर बैठा हुआ महान तेजस्वी कबन्ध अपनी चमक से दसों दिशाओं को प्रकाशित करने लगा और अंतरिक्ष में स्थित हो श्रीराम से इस प्रकार बोला—।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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