श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 72: श्रीराम और लक्ष्मण के द्वारा चिता की आग में कबन्ध का दाह तथा उसका दिव्य रूप में प्रकट होकर उन्हें सग्रीव से मित्रता करने के लिये कहना  »  श्लोक 27
 
 
श्लोक  3.72.27 
 
 
स मेरुशृङ्गाग्रगतामनिन्दितां
प्रविश्य पातालतलेऽपि वाश्रिताम्।
प्लवङ्गमानामृषभस्तव प्रियां
निहत्य रक्षांसि पुन: प्रदास्यति॥ २७॥
 
 
अनुवाद
 
  वो आपकी प्रिय सती-साध्वी सीता या तो मेरु पर्वत की चोटी पर पहुंचायी गयी हैं या पाताल लोक में प्रवेश करके रखी गयी हैं, वानरों के प्रमुख सुग्रीव समस्त राक्षसों का वध करके उन्हें पुनः आपके पास ला देंगे।
 
 
इत्यार्षे श्रीमद्रामायणे वाल्मीकीये आदिकाव्येऽरण्यकाण्डे द्विसप्ततितम: सर्ग:॥ ७२॥
इस प्रकार श्रीवाल्मीकिनिर्मित आर्षरामायण आदिकाव्यके अरण्यकाण्डमें बहत्तरवाँ सर्ग पूरा हुआ॥ ७२॥
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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