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श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
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काण्ड 3: अरण्य काण्ड
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सर्ग 72: श्रीराम और लक्ष्मण के द्वारा चिता की आग में कबन्ध का दाह तथा उसका दिव्य रूप में प्रकट होकर उन्हें सग्रीव से मित्रता करने के लिये कहना
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श्लोक 2
श्लोक
3.72.2
लक्ष्मणस्तु महोल्काभिर्ज्वलिताभि: समन्तत:।
चितामादीपयामास सा प्रजज्वाल सर्वत:॥ २॥
अनुवाद
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लक्ष्मण ने बड़ी-बड़ी मशालें चारों ओर फेंक कर चिता में आग लगा दी। देखते ही देखते चिता चारों ओर से जल उठी।
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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