श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 72: श्रीराम और लक्ष्मण के द्वारा चिता की आग में कबन्ध का दाह तथा उसका दिव्य रूप में प्रकट होकर उन्हें सग्रीव से मित्रता करने के लिये कहना  »  श्लोक 18
 
 
श्लोक  3.72.18 
 
 
अद्रोहाय समागम्य दीप्यमाने विभावसौ।
न च ते सोऽवमन्तव्य: सुग्रीवो वानराधिप:॥ १८॥
 
 
अनुवाद
 
  द्रोह से दूर रहने के लिए दीप्यमान अग्नि के साक्षी में मित्रता स्थापित करें और ऐसा करने के बाद आपको कभी भी वानरों के राजा सुग्रीव का तिरस्कार नहीं करना चाहिए।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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