श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 3: अरण्य काण्ड  »  सर्ग 71: कबन्ध की आत्मकथा, अपने शरीर का दाह हो जाने पर उसका श्रीराम को सीता के अन्वेषण में सहायता देने का आश्वासन  »  श्लोक 6-7
 
 
श्लोक  3.71.6-7 
 
 
यदा छित्त्वा भुजौ रामस्त्वां दहेद् विजने वने॥ ६॥
तदा त्वं प्राप्स्यसे रूपं स्वमेव विपुलं शुभम्।
श्रिया विराजितं पुत्रं दनोस्त्वं विद्धि लक्ष्मण॥ ७॥
 
 
अनुवाद
 
  ‘जब श्रीराम (और लक्ष्मण) तुम्हारी दोनों भुजाएँ काटकर तुम्हें निर्जन वनमें जलायेंगे, तब तुम पुन: अपने उसी परम उत्तम, सुन्दर और शोभासम्पन्न रूपको प्राप्त कर लोगे।’ लक्ष्मण! इस प्रकार तुम मुझे एक दुराचारी दानव समझो॥ ६-७॥
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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