वेदामृत
Reset
Home
ग्रन्थ
श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
श्रीमद् भगवद गीता
______________
श्री विष्णु पुराण
श्रीमद् भागवतम
______________
श्रीचैतन्य भागवत
वैष्णव भजन
About
Contact
श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
»
काण्ड 3: अरण्य काण्ड
»
सर्ग 71: कबन्ध की आत्मकथा, अपने शरीर का दाह हो जाने पर उसका श्रीराम को सीता के अन्वेषण में सहायता देने का आश्वासन
»
श्लोक 32
श्लोक
3.71.32
दग्धस्त्वयाहमवटे न्यायेन रघुनन्दन।
वक्ष्यामि तं महावीर यस्तं वेत्स्यति राक्षसम्॥ ३२॥
अनुवाद
play_arrowpause
महावीर रघुनंदन! जब तुमने विधिपूर्वक मेरे शरीर का दाह संस्कार कर दिया तब मैं उस महापुरुष से परिचित कराऊँगा जो उस राक्षस को जानते हैं।
Connect Form
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
© copyright 2024 vedamrit. All Rights Reserved.