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श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
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काण्ड 3: अरण्य काण्ड
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सर्ग 71: कबन्ध की आत्मकथा, अपने शरीर का दाह हो जाने पर उसका श्रीराम को सीता के अन्वेषण में सहायता देने का आश्वासन
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श्लोक 31
श्लोक
3.71.31
किं तु यावन्न यात्यस्तं सविता श्रान्तवाहन:।
तावन्मामवटे क्षिप्त्वा दह राम यथाविधि॥ ३१॥
अनुवाद
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किन्तु श्रीराम! जब तक सूर्यदेव अपने घोड़ों के थक जाने पर अस्त नहीं हो जाते, तब तक मुझे गड्ढे में डालकर शास्त्रों के अनुसार मेरा अंतिम संस्कार कर दीजिए।
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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